शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

प्रेम-रोग तो नहीं?- (छविछंद)- by poet pukhraj yadav

छंद-परिचय-
   छविछंद
(जाति= वासव/
चरण=४/
कुल मात्रा=३२/
कुल वर्ण= २४)
१२१ १२१

कभी तय इश्क,
करे कुछ नाहि|
धुँआ कह जान,
कहे तब पाहि|

सुधा सम मीठ,
मीठ अधि चाहि|
हरे मन तेज,
मधू लब जाहि|

खरा वह सार,
बहे जस धार,
करे नत प्रेम,
वही लग पार|

चले हम संग,
बने जस अंग|
सुनो तुम प्रीत,
रहे तब संग|

नहीं तव दूर|
बनी जब हीर|
करू वर नाम,
बनू तब वीर|

कहे जग रोग,
इसे मय,सार|
दिया उर वार,
बचे फिर प्यार|

लती भय नैन,
रमा रम जात|
हरे हर पीर,
निरंक प्रयाग|

     *©पुखराज यादव*

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

हम आए हैं द्वारे आपके-(मलयज छंद)- by poet pukhraj yadav

छंद परिचय-
*मलयज छंद*
(जाति= वासव/
चरण=४/
कुल मात्रा= ३२/
कुल वर्ण=३२)
सीमा-
*११ ११ ११ ११*

सुर सुन स्व तनिक,
तुम अचल अटल|
सम सरि कल-कल,
सपथ वरन जल|

प्रखर तपन कम,
सम अति विवरण|
सम विफल मनन|
कर ज्वलत किरण|

क्षिति जल गगन,
समर,पवन सब,
सहज तुम धरत,
नमन अमर अब|

अहमक जन-जन,
कर पथक चरण|
धन ललक अजब,
मनुज मति हरण|

पक्ष-विपक्ष तज,
सब प्रभु विनमन|
कटु लय हर कर,
रख लयत जतन|

सुर सुन स्व तनिक,
तुम अचल अटल|
सम सरि कल-कल,
सपथ वरन जल|

  *©पुखराज यादव*
  बिन्द्रावन(कोमाखान)

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

आओं भविष्य लिखदें- (अष्टक छंद) by poet Pukhraj yadav

छंद परिचय-
अष्टक छंद
(जाति=वासव/
चरण=४/
कुल मात्रा= ३२/
कुल वर्ण= २७)
सीमा-
*१११ १११ २*

खड़ग चल रहे|
अब दुख न सहे|
हम सब लिख दें,
मिलकर कल को|

बदल कर रखें,
किसमत चल को|
पल-पल अति है,
क्षण-क्षण गति है|

नमन सब करें|
तुम पर स्वर भरें|
डग-मग-डग ना,
पथ पर निकलें|

छन-छन-छन हो,
कदम स्वर सभी|
घन-घन-घन तो,
समर अमर हो|

रह न चुप अभी|
कर सकल सभी|
जन जन जगते,
बन गिरिज तभी|

टिक-टिक करते,
समय-समय पे|
बन सम क्षण भी|
महक सब तभी|

खड़ग चल रहे|
अब दुख न सहे|
हम सब लिख दें,
मिलकर कल को|

    ©पुखराज यादव
          महासमुन्द

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

कर्मपुष्प का रोपण- (पर्यावरणी छंद)- by poet Pukhraj Yadav

छंद परिचय-
*पर्यावरणी छंद*
(जाति- वासव /
चरण=४/
कुल मात्रा=३२/
कुल वर्ण=२०)
सीमा-
*२लघु+मगण*

मिल जाए जो,
बिन पीड़ा के|
फल वो जैसे,
कुछ खोटा हो|

पग छाले जो,
लगते ज्यों ज्यों,
फिर आनंदी,
मन मेरा त्यों|

डग ना भाई,
तप तो खोता,
छिप काहे को,
तम में रोता|

लग जाने दे,
पय में गोता,
फिर तो देखो,
जय क्या होता|

रख कोई ना,
मन में आरा,
सब हैं तेरे,
सबका प्यारा|

कर ऐसे तो,
कुछ हो पारी,
मन मोहे तू,
बन व्यापारी|

चल जाए तो,
स्व किनारा को,
विजयी है तू,
मनु प्यारा जो|

रचनाकार-
*©पुखराज यादव*
    9977330179
         महासमुन्द

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

श्रम ही सार है - (अष्टांग छंद) - by poet Pukhraj yadav

छंद परिचय-
*अष्टांग छंद*
(जाति=वासव/
चरण=४/
कुल मात्रा=३२/
कुल वर्ण=२४)
सीमा-
*नगण-यगण*

चुप-चुप क्यों हो|
डर-कर ज्यों हों|
चल-चल भाई,
न कर बढ़ाई|

सबकुछ लेखा|
कलकब देखा|
पहल न कोई,
स्व न-कर दोई|

श्रम कर बंदें,
मन कर गंगे|
उजर न तू है|
दिपक न,लौ है|

सरल अहन् है|
विनय प्रधाना|
नित-नित झूके,
प्रखर विद्वाना|

छल-जल फैला,
मत-कर मैला|
सफर ढले ना,
चल न चले तो|

पग-पग तेरा,
सम सम फेरा|
लिख-लिख घेरा|
नहिं कर डेरा|

नमन तुम्हारा|
विनय सु-धारा|
मनुज तुही है|
जगत तुम्हारा|

*©पुखराज यादव
       महासमुन्द

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

जैसा मन वैसा तन-(धारावाही छंद) by Poet pukhraj yadav

छंद परिचय-
*धारावाही छंद*

(जाति=वासव/
चरण=४/
कुल मात्रा= ३२/
कुल वर्ण=१६)
सीमा-२२२२

घेरो मेघों,
रैना होने|
जैसे कोई,
पीड़ा धोने|

बाजा बाजे,
जैसे ढोला|
वैसे तासे,
धूनी साजे|

आजा सूता,
तू भी आना|
दूरी काटे|
आपे-आपे|

जैसा तूने,
बोया है जो|
वैसा ही तो,
काटेगा सो|

काहे काला,
सोचा तूने|
चाहे क्यों-क्यों
ढ़ोया तूने|

भाए कोई,
वैसा ही हो|
ढ़ालो सो तो,
साधे सा हो|

तेरा मेरा
काहे स्वांगे|
अर्था जोड़े,
भिक्षा मांगें|

घेरो मेघों,
रैना होने|
जैसे कोई,
पीड़ा धोने|

©पुखराज यादव
     महासमुन्द

रविवार, 3 दिसंबर 2017

देव शक्ति को नमन- अखण्ड छंद by Pukhraj yadav

छंद परिचय-
*अखण्ड छंद*
(जाति= वासव/चरण=४/कुल मात्रा=३२/कुल वर्ण= २०)

सुनो कहानी,
बड़ी महानी|
चले न कोई,
विपत्ति राही|

अयोग्य ना तू,
न सोचना ये|
असीम कर्ता,
वही वि-हर्ता|

कभी अकेला,
न सोच प्यारे|
सदा लगाना,
वि-घोष न्यारे|

वही विजेता|
वही विनेता|
नमों करे हो,
वही गुरू है|

वही चलाएँ,
हुँ मै खिलौना|
प्रणाम देवो,
बने सलौना|

©पुखराज यादव
      महासमुन्द

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

सिर्फ आशिकी- (भुजँगप्रयात छंद)

                 *सिर्फ आशिकी*

छंद- भुजंगप्रयात
मात्राएँ-
  (122 122 122 122)

न चुप्पी लबों पे,न बोली दिवानी।
न कोई इरादा,न यादें पुरानी।
उसे भी पता है,दिलों की कहानीं।
जुबा पे चढ़ी आशिकी की निशानी।

न रोके किसी के रुके ये रवानी।
न भोला हुआ मै,न हूई शिवानी।
लगी रूख कैसे,किसी ने न जानी।
रहा वक्त का फेर जैसे जवानी।

न कोई गिला था,न कोई विधानी।
हुँ राजा हुआ मै, बनी हीर रानी।
कहानी बनी ये, हमारी गुमानी।
सुना दूँ जरा क्या, दिलों की जुबानी।

न चुप्पी लबों पे,न बोली दिवानी।
न कोई इरादा,न यादें पुरानी।
उसे भी पता है,दिलों की कहानीं।
जुबा पे चढ़ी आशिकी की निशानी।

                 - रचना-
      पुखराज यादव"पुक्कू"
            महासमुन्द

मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017

ईश्वर के चरणों में -(शालिनी छंद)

        ईश्वर के चरणों में

         शालिनी छंद

(मगण तगण तगण गुरू गुरू)

हारा वो है देख,टूटा कहीं से।
ले जाता है कौन,ज्यादा यहीं से।
क्या क्या संभाले यार हीरा न मोती।
पीछे छूटे नाम काया व धोती।

वो है ज्ञाता विश्व का सार देखो।
माया पूरा है यहाँ नार देखो।
कैसे होगें मुक्त सोचो कभी तो।
छूटे माया डोर थोड़ा तभी तो।

ठण्ड़ा होना है सभी को यही तो।
काहे पाले द्वेष जाना वहीं तो।
ईर्ष्या हो या लोभ से पार जाऊँ।
खो जाऊँ ऐसे सुधी वार जाऊँ।

              - पुखराज यादव

मृत्यु को निमंत्रण -(स्वागता छंद)

          मृत्यु को निमंत्रण

         स्वागता
(रगण नगण भगण+ 22)

शोक-शोक लहरें बढ़ जाएँ।
काल मृत्यु तब तंड़व भाएँ।
घोर-घोर सब वंदन गाए।
मृत्युदेव भय दर्शण लाए।

हो रही गरम भू समझोगे।
देख ऊर्मि तुम ही उलझोगे।
दे रहे निमंत्रण क्यो जी।
काल से फलित कौन भला जी।

भूमि वायु जल अम्बर आगी।
मूल तत्व सब है कल रागी।
लूटते चल रहे हम बागी।
भू विनास करके बन भागी।

है उसे नमन जो नव सोचें।
लो सभी मिल चलो तम रोके।
सार जीवन करे हम साथी।
स्वच्छ हो जगत के कण साथी।

                     - पुखराज "अकाय"

अभिमन्यु-गाथा- (इंद्रवज्रा छंद)

            अभिमन्यु-गाथा

छंद- इंद्रवज्रा
मात्रा- त.... त.... ज...+ 22

है शौर्य का सार सरोज गाथा।
है वीर पर्याय अभिमन्यु गाथा।
सूना तभी वो व्युह शुन्य होके।
जैसे उसे हार कभी न रोके।

संसार का है वह वीर आला।
था ज्ञान एवं तलवार भाला।
था तुंग जैसे वह वीर सोला।
गंभीर रत्नाकर धीर भोला।

वो युद्ध को पांव बढ़ा रहा था।
ले तीर भाला विकराल वो था।
हो चक्रव्युहों सब तोड़ बाधा।
सुर्या बने वो रण में विधाता।

संघार दुर्योधन देख भागा।
जैसे वही काल समान आगा।
वो द्वंद संघार असीम लागा।
जो नर्तका काल समीर जागा।

हो चाल भूचाल अकाल साथा।
आकाश देखा नर काल गाथा।
हारे सभी युध्द समीर सारे।
ले आड़ वो ढ़ोग अजेय मारे।

वो गाज आगाज प्रहार भारी।
वो था महावीर कुमार भारी।

          -पुखराज यादव"अकाय"

कवि-धर्म-( दोधक छंद)

                   कवि-धर्म

छंद- दोधक छंद
मात्राएँ- (भ..+भ..+भ..+22= 16)
वर्ण- 11

क्या लिखते रहते तुम भाया।
हालत ठीक न है यह काया।
घोर विचार करो नहिं माया।
हो सब अर्थ रहे नहिं जाया।

साधक होकर अमीट होना।
सीख वही रख असीम द्रोणा।
मान कभी कम ना कवि होएँ।
जो पढ़ले वह जातक होएँ।

साम न दाम न दंड़ न कोई।
भेद नहीं रचलो पय कोई।
शब्द महान गढ़ो अब ज्ञानी।
वीर कवित्त बने पय मानी।

आखर आखर में स्वर होगा।
लोक सभी फिर साक्षर होगा।
दीपक होकर देख कभी तूँ।
आँख लड़ा तम से कभी तूँ।

धर्म यही अपना मित साथी।
पार सभी कर लक्ष्य तु हाथी।
देकर मुल्य यहीं सब जाएँ।
जीवन को सब सार बनाएँ।

          -  पुखराज यादव

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

बदलते ग्रामीण परिवेश-(भुजंगी छंद)

-       बदलते ग्रामीण परिवेश    -
              भुजंगी छंद

(यगण यगण यगण + लघु गुरू)

कहीं धूप है तो कहीं छाँव है।
कहीं शीत है तो कहीं रांव है।
कहीं आग,अग्नेय की ताव है।
कही स्वाह होता दिखे गांव है।

चलो तो सही पाँव लांघे अभी।
चलो आज हो पार मांगे सभी।
चलो उच्च हो ख्याल आधार के।
चलो ज्ञान हो योग संसार के।

सदा हो हमें ज्ञात रास्ता सहीं।
सदा हो मिले सत्य वास्ता सही।
सदा धीर हो चित्त तेरा मनू।
सदा पीर हो क्षीण तेरा मनू।

बसाएँ चलो गाँव आदर्श वो।
बसाएँ जहाँ काम उत्कर्ष वो।
बसाएँ वहाँ नाम गाँधी का।
बसाएँ वहाँ ग्राम गाँधी का।

            - अकाय श्री

गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

-युवा शक्ति- (नागराज-छंद)

            -युवा शक्ति-
छंद- नागराज
मात्रा-
(जगण रगण जगण रगण जगण+2)

हुई अभी न देर रे,न घोर ये घड़ी हुई।
न है मची हिलोर रे,न रेत की घड़ी गई।

चलो उठो युवा अभी,न बेर आज की ढ़ली।
दिवा जला रखो सभी,न है अभी निशा ढ़ली।

धरा तुझे पुकारती,युवा बढ़ो चलो अभी।
भविष्य है तु भारती,सुधा बने धरा तभी।

वियोग हो परोक्ष से,न देर है हुई अभी।
जगे-जगे युवा भरे,असीम है युवा सभी।

              - अकाय-श्री

अमर विजय- (नगस्वरूपिणी छंद)

               "अमर-विजय"

नगस्वरूपिणी छंद
(121 212 12)

विहंग ऊच्च हो चले,
उड़े तभी मिले फले।
धरा यहाँ विशाल है।
हुआ यहाँ भुचाल है।

बढ़ो बढ़ो सहीं अभी,
सखा यहाँ बयार है।
तरू नते वही सही,
बढ़े वही अपार है।

पहाड़ जीतने चलो,
बढ़ा-बढ़ा तु पाँव रे,
अजीत हो चले सभी,
रखों अदम्य छांव रे।

प्रभा रहे असीम ये,
चलो गढ़े वही प्रभा।
धरा मही सभी यही,
बने चलो तभी सभा।

             -अकाय-श्री

कविता- डमरू-घनाक्षरी छंद

डमरू-घनाक्षरी छंद
(2222,2222,2222,2222)

चल चल पग रख,डगर पर न डग।
बल बल रख सम,तम पर रख पग।

बढ़ बढ़ झट झट, खटखट मत कर।
हस हस चल अब,ठग स्वर मत भर।

मन रख मत मत,डगर अपन चल।
शत शत सम शत,भय रख मत छल।

दम सब सम सत,चल उठ उठ अब।
पल पल घट क्षण,रण रण सम सब।

              -अकाय श्री