शनिवार, 9 दिसंबर 2017

श्रम ही सार है - (अष्टांग छंद) - by poet Pukhraj yadav

छंद परिचय-
*अष्टांग छंद*
(जाति=वासव/
चरण=४/
कुल मात्रा=३२/
कुल वर्ण=२४)
सीमा-
*नगण-यगण*

चुप-चुप क्यों हो|
डर-कर ज्यों हों|
चल-चल भाई,
न कर बढ़ाई|

सबकुछ लेखा|
कलकब देखा|
पहल न कोई,
स्व न-कर दोई|

श्रम कर बंदें,
मन कर गंगे|
उजर न तू है|
दिपक न,लौ है|

सरल अहन् है|
विनय प्रधाना|
नित-नित झूके,
प्रखर विद्वाना|

छल-जल फैला,
मत-कर मैला|
सफर ढले ना,
चल न चले तो|

पग-पग तेरा,
सम सम फेरा|
लिख-लिख घेरा|
नहिं कर डेरा|

नमन तुम्हारा|
विनय सु-धारा|
मनुज तुही है|
जगत तुम्हारा|

*©पुखराज यादव
       महासमुन्द

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