मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017

कवि-धर्म-( दोधक छंद)

                   कवि-धर्म

छंद- दोधक छंद
मात्राएँ- (भ..+भ..+भ..+22= 16)
वर्ण- 11

क्या लिखते रहते तुम भाया।
हालत ठीक न है यह काया।
घोर विचार करो नहिं माया।
हो सब अर्थ रहे नहिं जाया।

साधक होकर अमीट होना।
सीख वही रख असीम द्रोणा।
मान कभी कम ना कवि होएँ।
जो पढ़ले वह जातक होएँ।

साम न दाम न दंड़ न कोई।
भेद नहीं रचलो पय कोई।
शब्द महान गढ़ो अब ज्ञानी।
वीर कवित्त बने पय मानी।

आखर आखर में स्वर होगा।
लोक सभी फिर साक्षर होगा।
दीपक होकर देख कभी तूँ।
आँख लड़ा तम से कभी तूँ।

धर्म यही अपना मित साथी।
पार सभी कर लक्ष्य तु हाथी।
देकर मुल्य यहीं सब जाएँ।
जीवन को सब सार बनाएँ।

          -  पुखराज यादव

1 टिप्पणी:

  1. साधक होकर अमीट होना।
    सीख वही रख असीम द्रोणा।

    इसमें तीन भगण दो गुरु वर्ण नहीं है आदरणीय यादव जी,11-11 वर्ण अवश्य है।
    कृपया मार्गदर्शन देंगे।

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