"अमर-विजय"
नगस्वरूपिणी छंद
(121 212 12)
विहंग ऊच्च हो चले,
उड़े तभी मिले फले।
धरा यहाँ विशाल है।
हुआ यहाँ भुचाल है।
बढ़ो बढ़ो सहीं अभी,
सखा यहाँ बयार है।
तरू नते वही सही,
बढ़े वही अपार है।
पहाड़ जीतने चलो,
बढ़ा-बढ़ा तु पाँव रे,
अजीत हो चले सभी,
रखों अदम्य छांव रे।
प्रभा रहे असीम ये,
चलो गढ़े वही प्रभा।
धरा मही सभी यही,
बने चलो तभी सभा।
-अकाय-श्री
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