- बदलते ग्रामीण परिवेश -
भुजंगी छंद
(यगण यगण यगण + लघु गुरू)
कहीं धूप है तो कहीं छाँव है।
कहीं शीत है तो कहीं रांव है।
कहीं आग,अग्नेय की ताव है।
कही स्वाह होता दिखे गांव है।
चलो तो सही पाँव लांघे अभी।
चलो आज हो पार मांगे सभी।
चलो उच्च हो ख्याल आधार के।
चलो ज्ञान हो योग संसार के।
सदा हो हमें ज्ञात रास्ता सहीं।
सदा हो मिले सत्य वास्ता सही।
सदा धीर हो चित्त तेरा मनू।
सदा पीर हो क्षीण तेरा मनू।
बसाएँ चलो गाँव आदर्श वो।
बसाएँ जहाँ काम उत्कर्ष वो।
बसाएँ वहाँ नाम गाँधी का।
बसाएँ वहाँ ग्राम गाँधी का।
- अकाय श्री
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