ईश्वर के चरणों में
शालिनी छंद
(मगण तगण तगण गुरू गुरू)
हारा वो है देख,टूटा कहीं से।
ले जाता है कौन,ज्यादा यहीं से।
क्या क्या संभाले यार हीरा न मोती।
पीछे छूटे नाम काया व धोती।
वो है ज्ञाता विश्व का सार देखो।
माया पूरा है यहाँ नार देखो।
कैसे होगें मुक्त सोचो कभी तो।
छूटे माया डोर थोड़ा तभी तो।
ठण्ड़ा होना है सभी को यही तो।
काहे पाले द्वेष जाना वहीं तो।
ईर्ष्या हो या लोभ से पार जाऊँ।
खो जाऊँ ऐसे सुधी वार जाऊँ।
- पुखराज यादव
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