मृत्यु को निमंत्रण
स्वागता
(रगण नगण भगण+ 22)
शोक-शोक लहरें बढ़ जाएँ।
काल मृत्यु तब तंड़व भाएँ।
घोर-घोर सब वंदन गाए।
मृत्युदेव भय दर्शण लाए।
हो रही गरम भू समझोगे।
देख ऊर्मि तुम ही उलझोगे।
दे रहे निमंत्रण क्यो जी।
काल से फलित कौन भला जी।
भूमि वायु जल अम्बर आगी।
मूल तत्व सब है कल रागी।
लूटते चल रहे हम बागी।
भू विनास करके बन भागी।
है उसे नमन जो नव सोचें।
लो सभी मिल चलो तम रोके।
सार जीवन करे हम साथी।
स्वच्छ हो जगत के कण साथी।
- पुखराज "अकाय"
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