मंगलवार, 14 नवंबर 2017

सिर्फ आशिकी- (भुजँगप्रयात छंद)

                 *सिर्फ आशिकी*

छंद- भुजंगप्रयात
मात्राएँ-
  (122 122 122 122)

न चुप्पी लबों पे,न बोली दिवानी।
न कोई इरादा,न यादें पुरानी।
उसे भी पता है,दिलों की कहानीं।
जुबा पे चढ़ी आशिकी की निशानी।

न रोके किसी के रुके ये रवानी।
न भोला हुआ मै,न हूई शिवानी।
लगी रूख कैसे,किसी ने न जानी।
रहा वक्त का फेर जैसे जवानी।

न कोई गिला था,न कोई विधानी।
हुँ राजा हुआ मै, बनी हीर रानी।
कहानी बनी ये, हमारी गुमानी।
सुना दूँ जरा क्या, दिलों की जुबानी।

न चुप्पी लबों पे,न बोली दिवानी।
न कोई इरादा,न यादें पुरानी।
उसे भी पता है,दिलों की कहानीं।
जुबा पे चढ़ी आशिकी की निशानी।

                 - रचना-
      पुखराज यादव"पुक्कू"
            महासमुन्द