*सिर्फ आशिकी*
छंद- भुजंगप्रयात
मात्राएँ-
(122 122 122 122)
न चुप्पी लबों पे,न बोली दिवानी।
न कोई इरादा,न यादें पुरानी।
उसे भी पता है,दिलों की कहानीं।
जुबा पे चढ़ी आशिकी की निशानी।
न रोके किसी के रुके ये रवानी।
न भोला हुआ मै,न हूई शिवानी।
लगी रूख कैसे,किसी ने न जानी।
रहा वक्त का फेर जैसे जवानी।
न कोई गिला था,न कोई विधानी।
हुँ राजा हुआ मै, बनी हीर रानी।
कहानी बनी ये, हमारी गुमानी।
सुना दूँ जरा क्या, दिलों की जुबानी।
न चुप्पी लबों पे,न बोली दिवानी।
न कोई इरादा,न यादें पुरानी।
उसे भी पता है,दिलों की कहानीं।
जुबा पे चढ़ी आशिकी की निशानी।
- रचना-
पुखराज यादव"पुक्कू"
महासमुन्द